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हस्तकला शिल्प और तकनीक का सहास्तित्व

हस्तकला शिल्प और तकनीक का सहास्तित्व

हस्तकला शिल्प और तकनीक का सहास्तित्व / Courtesy Indian Retailer

अर्चना उपाध्याय प्रयागराज से हैं और वस्त्र मंत्रालय,भारत सरकार में बतौर एम्पैनल्ड डिज़ाइनर कार्यरत हैं। साहित्य ,कला ,संस्कृति एवं सेवा के क्षेत्र में कई पुरुस्कारों से सम्मानित हैं अर्चना ने त्रैमासिक ‘आगमन ‘ पत्रिका के सम्पादन के साथ ही देश के विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में निरंतर लेखन के साथ ही साझा काव्य संग्रह ‘भाव-कलश में भागीदारी की है । सह लेखक के तौर पर प्रसिद्ध लेखक डॉ. विवेक शंकर के साथ प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘उपन्यास की परख’ प्रतियोगी परीक्षार्थियों में खासी लोकप्रिय है। देश की विभिन्न कला- विधाओं के विस्तार और पुनर्जीवन में सतत सक्रिय अर्चना एक प्रसिद्ध यूट्यूबर भी हैं| अपने चैनल अंतरा द बुकशेल्फ` पर उन्होंने साहित्य की सौ से अधिक कालजयी रचनाओं की समीक्षा की है। वह अंतरा सत्व फाउंडेशन की प्रबंध निदेशक के तौर पर साहित्य व कला के सतत सृजन एवं प्रचार -प्रसार में सक्रिय हैं

प्रश्न 1 : तकनीकी प्रगति जिसका प्रभाव कला और कला से जुड़े हर आयाम पर पड़ रहा है, इस के साथ हस्तकला शिल्प के सह-अस्तित्व को आप कैसे देखती हैं?

प्रगति अपने आप में एक सकारात्मक शब्द है। जब वह तकनीकी के साथ मिल कर अपना प्रभाव डाले तो निःसंदेह हस्तकला को एक नया आयाम मिलेगा। तकनीकी की सबसे बड़ी खूबी ही यही होती है कि वह किसी कार्य को सुगम और त्रुटिरहित कर देता है। हस्तशिल्प की अपनी एक विस्तृत दुनिया है, जहाँ हुनर, अनुभव और परिश्रम के बाद भी परिणाम की गति काफी धीमी है। ऐसे में जब उत्पाद की माँग कम समय में अधिक हो जाती है तो कम संसाधन वाले शिल्पी के सामने कई तरह की मुश्किलें आ खड़ी होती हैं। इन कारोबारी विफलताओं के कारण ही हस्तशिल्प छोटे स्थानीय बाजारों से बाहर बमुश्किल ही निकल पाता है। बीते कुछ दशकों में कई प्रदेशों में लुप्त हो रहे पारम्परिक लोक शिल्प और घटते जा रहे शिल्पियों के पीछे यह एक अहम कारण रहा है। … और इसी का समाधान है तकनीकी सहयोग | मैंने पिछले १५ -२० सालों में हस्तशिल्प के विभिन्न स्तरों पर तकनीक और शिल्प का जो तालमेल देखा है, वह निश्चय ही करिश्माई है। यह जानकर किसी को भी अच्छा लगेगा कि अब असम के किसी दूर दराज गाँव का बैंबू क्राफ्ट सात समंदर पार किसी अमेरिकी के ड्राइंग रूम की शोभा बनता है तो गुजरात का ठेठ माटी शिल्प ऑस्ट्रेलिया के किसी शोधार्थी के अध्ययन का विषय है | मेरी नजर में ये तकनीक और हुनर के सहअस्तित्व का बेहतरीन उदाहरण है|

प्रश्न 2: आप अपने क्षेत्र से जुड़े कार्यों को नौकरी की तरह देखती हैं या रुचि का किरदार अधिक है ?

किसी विषय में रुचि होना और उसमें सफलता पाना दो बिलकुल अलग – अलग बातें हैं। किसी क्षेत्र में आपकी सफलता का प्रतिशत उतना ही अधिक होता है,  जितनी अधिक उसमें आपकी रुचि होती है। कला के क्षेत्र में मेरा आना एक सुखद संयोग ही था। रंगों और रेखाओं से मेरा प्यार कब हुआ, यह ठीक-ठीक बता पाना मेरे लिए भी मुश्किल है लेकिन रेखाएं और रंग शुरू से ही  मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा रहे। इसे प्रोफेशनली मजबूती देने में कला के क्षेत्र में हासिल की गई मेरी शिक्षा और विभिन्न सरकारी प्रकल्पों से जुड़ाव ने भी मुझे इस क्षेत्र को बेहतर ढंग से समझने में मदद की। कालांतर में भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय और उत्तर प्रदेश इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन एंड रिसर्च के डिज़ाइनर के तौर पर भी मुझे देश में बिखरी हस्तकलाओं, शिल्प और शिल्पगुरुओं की खाटी जिंदगी को और करीब से देखने का मौका मिला | इसमें दो राय नहीं कि यदि आपकी रुचि ही आपका प्रोफेशन भी हो तो आपकी संतुष्टि और सुकून का स्तर बिल्कुल अलग हो जाता है। मैं खुद को भी ऐसे सौभाग्यशाली लोगों में गिनती हूं।

अर्चना उपाध्याय

प्रश्न 3: क्या हस्तशिल्प कला आज भी पूर्णतः ‘हस्त’ शिल्प है या अब उसमें तकनीकी प्रक्रियाओं की दखल है?

निश्चित रूप से हस्तकला में तकनीकी का दखल बढ़ा है और मेरी नजर में यह होना ही चाहिए | समय के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों की तरह लोककलाओं और हस्तशिल्प में भी व्यापक तकनीकी प्रयोग बढ़ा है । बेसिक डिज़ाइन से लेकर, फाइनल प्रोडक्ट तक में सॉफ्टवेयर्स मददगार साबित हो रहे हैं। मैनुअली असंभव से दिखने वाले काम इनकी मदद से आसान हुए हैं। इसके अलावा कार्विंग और प्रिंटिंग में ऑटो मेशन ने एक बेहद जटिल प्रक्रिया को बहुत आसान कर दिया है। ब्लॉक प्रिंटिंग से लेकर पीतल की कारीगरी और पारम्परिक ज्वेलरी डिजाइनिंग से लेकर धातुओं पर होने वाली कोटिंग तक ने पूरे कारोबार को नया विस्तार दिया है। इन आधुनिक तकनीकों की मदद से शिल्पकारों के लिए भी मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने में मदद मिली है।

प्रश्न 4: ऑनलाइन-बिक्री के प्लेटफॉर्म्स आने के बाद हस्तकला शिल्प के उत्पादन पर किस तरह का प्रभाव है?

हाल ही में ऑनलाइन – बिक्री के प्लेटफॉर्म्स आने के बाद हस्तकला शिल्प के उत्पादन पर सकारत्मक प्रभाव ही पड़ा है | पहले के समय में जो कलाएं विशेष स्थान से सम्बंधित होकर वहीँ तक सीमित रह जाती थीं और उनके कारीगर हुनरमंद होने के बावजूद अपनी रोज़ी-रोटी के लिए चिंतित रहते थे, उन्हें ऑनलाइन बाजार ने एक मजबूत आधार दिया है। कलाओं को न सिर्फ बचाए रखने में बल्कि उनके लिए बड़ा बाजार तैयार करने में भी क्रांतिकारी बदलाव आया है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का एक दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है की इसने कारीगर और खरीदार के बीच की कई कड़ियों को एक झटके में बाहर कर दिया है। जो कारीगर अपने हुनर के सिर्फ दो रोटी के जुगाड़ के लिए औने- पौने भावों में बेचने को मजबूर थे, वे अब खुद विक्रेता बन बैठे हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे इर्द-गिर्द मिल जाएंगे जिसमें ऐसे शिल्पकारों ने छोटे-छोटे समूह बनाकर खुद को कम्पनी के तौर पर स्थापित किया है। वे पुराने निर्यातकों के लिए चुनौती भी बन रहे हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ने लोकल कारीगरों को थोड़े से प्रयास में ही ग्लोबल बना दिया है |

प्रश्न 5: क्या यह कहना सही है कि जिन्हें यह कला विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से मिली है वे ही इसे जारी रखे हुए हैं या फिर हस्त-शिल्प कला में नए तबके में लोग और कला में रुचि रखते भारतीय युवा भी इसे एक करियर की तरह देखते हैं?

मैं इससे पूर्णतः सहमत नहीं हूँ। पारम्परिक शिल्प में मेहनत के मुकाबले आय न होने के कारण बड़ी संख्या में युवा अपने पुश्तैनी हुनर को छोड़कर दूसरे काम-धंधे तलाश रहे हैं। हालंकि इन्ही के बीच ऐसे युवाओं की कमी भी नहीं है जिन्होंने तकनीक और ज्ञान के प्रयोग से परम्परागत शिल्प को नया कलेवर और पहचान दी है। एक स्त्री होने के नाते मुझे यह बात बहुत प्रभावित करती है कि तकनीकी दौर ने उन महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया है जो घर की चारदीवारी के बाहर सोचती भी नहीं थीं। पिछले साल मैंने थारू जनजाति के बीच जाकर उनके जूट शिल्प पर कुछ दिन काम किया। प्रक्षिशण के दौरान वहाँ रहना जितना सुखद अनुभव था उतना ही रोमांचक भी। लगभग जंगल के इलाके में रहने वाली ये वे महिलाएं थीं जो निरक्षर होते हुए और संसाधनों के अभाव में भी अपने हुनर के दम पर वैश्विक पहचान बना चुकी हैं। सरकार के द्वारा चलाई जाने वाली प्रशिक्षण व प्रोत्साहन योजनाएं भी पुश्तैनी शिल्पकारों के लिए मददगार साबित हो रही हैं। उपायुक्त हैंडीक्राफ्ट, राष्ट्रीय डिज़ाइन प्रशिक्षण संस्थान एवं रिसर्च जैसे कई संस्थान हैं जो उच्च शिक्षित और कौशल सम्पन्न युवाओं को बेहतर अवसर प्रदान कर रहे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

प्रश्न 6: अंत में, भारतीय लोक कला पर आपके निजी विचार एवं हमारी इस सभ्यता का आप के ऊपर क्या प्रभाव रहा है ?

भारतीय संस्कृति `वसुधैव कुटुंबकम` में विश्वास करती है। लोकशिल्प और लोककलाओं में भी यह सौ फीसदी परिलक्षित होता है। इनसे जुड़े लोग साम्प्रदायिक सौहार्द, समानता और साहचर्य की मोटी -मोटी किताबों को बिना पढ़े ही एक-दूसरे के साथ ऐसे गड्डमड्ड हैं कि इन्हें आप अलग-अलग करके सोच भी नहीं सकते। एक दूसरे पर इनकी सामाजिक निर्भरता और साथ चलने की अदृश्य प्रेरणा मेरे जीवन पर भी अलग ही छाप छोड़ती है | मैं यह बात हमेशा से महसूस करती हूँ कि जैसे सात रंगों का इंद्रधनुष एक साथ होने पर चटख सफेद रोशनी का एहसास कराता है वैसे ही जाति ,धर्म, स्थान, प्रदेश ही नहीं देश की सीमाओं से परे ये लोक शिल्पी भी भारतीय एकता के अलग ही प्रकाश पुंज हैं।

साक्षात्कार कर्ता: देवांश दीक्षित

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