May 10Hindiअपनों की राख में चिंगारियाँ भी नहीं है अब — संदीप नाइक की कविताएं कितना अभागा समय है कि अपनों की राख में चिंगारियाँ भी नहीं है अब मैं लौटना चाहता हूँ यहाँ का समूचा वातायन मुझे रोकता