Dec 20, 2021Hindi Miscellaneousभोगे हुए यथार्थ के दुःख की नींव में हमेशा एक चिंगारी होती है - (अक्करमाशी, शरणकुमार लिंबाले)प्रकाशन वर्ष – १९८४ ( 1984 ) अनुवाद – सूर्यनारायण रणसुभे भोगे हुए यथार्थ के दुःख की नींव में हमेशा एक चिंगारी होती है। यह चिंगारी दो मुही...