प्रतिभा गुप्ता
ईश्वर की पात्रता
लो लौटा रही हूँ
तुमको ईश्वर
मेरी प्रार्थनाएँ सुनने का ऋण
अब देख लो हिसाब-किताब
लोगों ने कहा
तुम्हें चाहिए एक सुगन्धित कविता
जो कि मेरे पास तो नहीं
रखती हूँ अब सामने यह
गरीब भूख की बासी कविता
सिंहासन छोड़ो ईश्वर
आओ पालथी मार कर
साथ में तोड़ते हैं निवाला
तुम भी कह लेना अपनी
ईश्वर आज हम तुम
कन्धे से कन्धा मिलाकर
छाटेंगे बतकही
करेंगे दातुन
ऐ ईश्वर!
क्या तुम अपने घर के जाले नहीं साफ़ करते हें?
और इतनी गर्मी में मुकुट कौन पहनता है
आओ खिलाती हूँ
तुमको कान्द का अचार
तुम्हारी नानी तो भेजती नहीं होंगी
बड़े आदमी जो ठहरे
कितने साल हुए तुम्हें
कान का खूँट निकाले
लाओ तेल डाल दूँ
फिर सुनना प्रार्थनाएँ चकाचक्क
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