देवेश पथ सारिया
वे लोकतंत्र को कम जानते थे
वे बहुत पढ़ी-लिखी नहीं थीं
‘ताइवान‘ में काम मिलने की ख़बर
उन्हें सुना
उनके पैर छू रहा था जब मैं
मुझे आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा-
“बेटा संभल कर रहना ‘तालिबान’ में!”
जो पढ़े-लिखे मिलते थे
खोज ख़बर लेते थे
कुछ कुंठित होते थे
कुछ ‘तालिबान’ पर अटक जाते थे
सैनी किस्मत लाल की ठेली पर खड़े
गोलगप्पा गड़पते हुए
और ग़लती सुधारे जाने पर बेशर्मी से कहते-
“तो काईं बड़ी बात होगी?”
किताबों, अख़बारों,
निरक्षरों और शिक्षित बड़बोलों
सबके बीच
तूती बोलती थी
एक फ़सादी शैतान की
एक शांतिप्रिय लोकतंत्र को लोग
दरकिनार किए रहते थे!
Previous
Next