सैफ़ अंसारी
कन्फेशन बॉक्स
चाहता हूँ
किसी पेड़ के खोखल में
सिर दे कर
फूट-फूट कर रो लेना
जानता हूँ
वो मेरे हर ग़लत किये को सुनेगा
किसी चर्च के पादरी की तरह
बिना टोके एक मौन धारण किये हुए।
फिर बीच-बीच में जब मैं
अपने पापों का बखान करने हिचकिचाऊंगा
तो वो अपनी शाखें हिलाकर देगा
विश्वास का एक ठंडा झोंका।
और कहेगा- "डरो मत, अपने मन का बोझ हलका करो!"
कन्फेशन के दौरान
मेरे निकले आँसुओं को
खोखल के किसी कोने में इखट्ठा कर लेगा
और रो-रो कर
जब मेरी आँख लग आएगी
तो धीरे से सरका देगा
सारी बूँदें अपनी जड़ों में
जड़े सोख लेंगी वे सारे आँसू
और उन आँसुओं को पीने के बाद
अगली भोर
उसमें खिल आएगा एक फूल।
"पेड़ में लगे फूल क्या हैं?"
किसी ने मुझसे पूछा
मैंने कहा-
फूल कंफेशन्स हैं,
पेड़ से लटकते फूल
किसी के पाप, दुःख और प्रयाश्चित ही तो हैं।
जिस रोज़ कोई फूल झड़कर
गिर जाता है पेड़ से
समझ जाना किसी का कोई पाप
माफ़ हो चुका है
किसी को उसके मन, शरीर
और आत्मा के पाप से
मिल गई है मुक्ति।