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तुमसे मिलना / देवांश एकांत

तुमसे मिलने से पहले तुमसे मिलने वाले दिन अन्य सभी क्रियाएँ छुट्टी पर चली जाती हैं एक ध्वनि उफनती है भीतर गिरजाघर के पवित्र स्वर सी जो पूरी देह में रेंगती हुई तुम्हारे पास पहुँचने की इच्छा को तीव्र करती है

एक वैज्ञानिक जैसे करता है बार-बार अपने प्रयोगों का निरीक्षण मैं भी सहेज सहेजकर रखता हूँ अपने हाव-भाव तुमसे मिलने से पहले

समय जोंक लगता है घड़ी आलसी प्रतीत होती है दरवाज़े पर जा जाकर इस तरह लौटता हूँ मानो तुम अभी प्रकट हो जाओगी हवा के कैनवास पर

जाने कितनी आशंकाएँ घेर लेती हैं मन को अकारण

शायद आशंकाओं और प्रेमियों का जन्मों पुराना रिश्ता है

युद्ध, कर्फ़्यू, महामारियाँ दंगे और सरकारी गतिविधियाँ आकर डराने लगती हैं इस प्रेमी मन को चेताने लगती हैं जल्द से जल्द मिलने को

देखो न ! पुनः आ पहुँचा हूँ समय से पहले समय से लड़ते तुमसे मिलने

तुम कहाँ पहुँची ?


तुम्हारे संग होते हुए मेरे पास धरती के सारे रंग होते हैं मैं कहीं भी सौंदर्य देख सकता हूँ

दृश्यों में कला की मात्रा अपने आप बढ़ जाती है तुम्हारी आँखों की बनावट मुझे वर्ली और मधुबनी की याद दिलाती है

बढ़ता है विश्वास इस बात पर कि सागर को भी अँजुरी में बाँधा जा सकता है प्रेम की दुहाई देकर

रोका जा सकता है क्रूरता को प्रेमियों की हथेलियाँ संग लाकर

तने वृक्ष झुकाये जा सकते हैं दूब के काँधे तक समर्पण के भाव से

तुमने जब छुआ मुझे तो मैंने जाना कि दो जोड़ी हाथ सिर्फ़ आलिंगन ही नहीं बांध भी बन सकते हैं जीवन की बाढ़ में

मुझे नही है ज्ञान पुरातत्व का मैंने नही देखी हैं हज़ारों वर्ष पुरानी मूर्तियाँ या लोक कथाओं से गढ़ी गुफ़ाएँ पर तुम्हारी मुस्कान के स्पर्श से मेरे मन की देह में होते कम्पन से मैं दावे के साथ कह सकता हूँ दुनिया में यदि कुछ प्राचीन है तो वह है प्रेम

शहर के कैफ़े में जब तुम घबराहट में देखती हो इधर-उधर लोगों के हाव-भाव को यह दृश्य मुझे तुम्हारे भीतर की औरत के और पास लाकर खड़ा करता है कैसे तुम्हारे ‘स’ में स्वयं से पहले समाज आता है घर परिवार आता है और मेरे अंदर का लड़का आदमी में परिवर्तित हो जाता है

बस एक चुप संगीत बजता रहता है मेरा बहुमूल्य समय बीतता रहता है हाफ़िज़ हाफ़िज़ होता रहता हूँ मैं और हर बार चूक जाता हूँ तुम्हें बताने से कि इस भीड़ भरे नगर में मेरी सूखती आकांक्षाओं पर नमी का छींटा है तुम्हारा प्रेम।


तुमसे मिलने के बाद एक स्थिरता

मन की नाव किनारे आ लगी हो हृदय की लहरें घुलती हुईं मुलाक़ात की स्याह रोशनाई में

आह ! अनंत स्मरण दृश्यों का स्निग्ध क्षणों की पुनरावृत्ति विपुल अंतरिक्ष सी भावनायें जिन्हें समेटने में अक्षम मेरा एकांत

मीठी स्मृतियों से हृदय चींटी हो चला है

एक हल्कापन है भीतर मानो तुमसे मिलने से पहले खाड़ी देश की ज़मीन से निकला कीच द्रव्य था जो अब परिष्कृत हो तैयार है किसी भी वाहन में जान फूंकने को

हवा सी हो गयी है देह मैं चिड़ियों की उड़ान बन सकता हूँ मैं तपती झोपड़ी की ठंडक बन सकता हूँ मैं पवनचक्कियों की ऊर्जा हो सकता हूँ मैं किसी ग़ुब्बारे में हीलियम हो सकता हूँ मैं वाद्य यंत्रों से गुज़रते हुए नयी धुन का सर्जक हो सकता हूँ अब मैं कोई भी विचार हो सकता हूँ

दुनिया से थोड़ी दुनिया ले सकता हूँ दुनिया को नयी दुनिया दे सकता हूँ ।


 



देवांश दीक्षित उन्नाव, उत्तर प्रदेश से हैं और पेट्रोलियम विश्वविद्यालय, देहरादून से केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। मूल रूप से हिंदी काव्य और गद्य लेखन में सक्रिय। कविताओं के अनुवाचन हेतु ‘Ekaant’ नाम से पॉडकास्ट चैनल भी चलाते हैं।

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