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समलैंगिकता पर शुभम नेगी की दो कविताएं

साक्षात्कार


दो लड़कियों का प्रेम धरने का पर्यायवाची था

आलिंगन में चिपकी उनकी देहों के मध्य तैनात था पृथ्वी के एक गोलार्द्ध का अंधकार

वे जहाँ गयीं उनका प्रेम रिसा समाज की भावनाएँ आहत हुईं उनका अस्तित्व एक संग्राम था उनके चुम्बन संग्राम में उठे नारे

उनके प्रेम में प्रकृति का वास था पहाड़ की चोटियों ने चोटियों में उनकी गुंथे बर्फ़ीले रेशों के गजरे उनके आपसी स्पर्श की आंच पर गर्म हुए मरुस्थल समंदर पर उड़ते पंछियों ने किया उनकी स्वप्न-कथा में संगीत-निर्देशन

उनके प्रेम में प्रकृति का वास था उसी का हवाला देकर मारा गया उन्हें

उनकी हत्या पर निकली चीखें क्रांतियों का आव्हान करते नगाड़े हैं

काश कविताएँ होना चाहतीं दो प्रेमियों की हत्या पर बिलखते पहाड़ के आंसुओं का साक्षात्कार काश!


क्वीयर


(क्वीयर LGBTQ+ समुदाय का अम्ब्रेला टर्म है।)


उसने चाहा प्रेम करना अपने हमउम्र लड़कों की तरह

उसने लिखे ख़त की अदला-बदली कॉपियों की लगाए मर्दानी ख़ुश्बू वाले सेंट फांदी होस्टलों की दीवारें बिखेरीं सड़कों पर सीटियाँ लटकाया फुदकते यौवन को बसों की पिछली ताकियों पर की हत्याएँ रातों की नोकिया पर मैसेज पैकों से उसने अपार कोशिशें की पर अपनी उम्र के लड़कों की तरह नहीं कर पाया वह प्रेम

फिर उसने चाहा अपनी उम्र से भी बड़ा हो जाना बिना बालों के गालों पर फेरे उस्तरे अकैडमिक ब्लॉकों के पीछे जाकर चुराए चुम्बन साइबर कैफ़े के कोने वाले कम्प्यूटर से दर्ज की आंखों में तस्वीरें जिन्हें वो कई रातों तक धुंधला होने से बचाता रहा

उसने की प्रेम की नाकाम कोशिशें उन लड़कियों से जिनका शरमाना बिखरा रहता था बसों की पिछली ताकियों की बग़ल वाली सीटों पर और उनसे जो समेट लेती थीं अपने बैग की छल्लों वाली जिप में सड़क पर बिखरी सीटियाँ और उनसे भी जो अकैडमिक ब्लॉकों के पीछे कभी नहीं गयीं

उसने प्रेम कविताएँ लिखीं उन लड़कियों के लिए जिन्हें नहीं समझ आती थी कविताएँ ना ही प्रेम

गुलाब की तरह छूते ही बिखर जाने वाली लड़कियों के लिए लिखा उसने प्रेम और उनके लिए भी जो लौटा देती थीं खाली ही सुसम्मान सभी लड़कों की डायरियां

इन सब लड़कियों की आंखों में देखे उसने चमकते, असीम संसार जिनमें से कोई भी उसका अपना नहीं था

तो बरसों बाद जब उसने पाया अपनी घुटन को नाचते, गाते, उड़ते आंखों में एक लड़के की तो उसने देखा उतरते हुए अड्डे पर बसों की ताकियों से अपने फुदकते यौवन को उस लड़के की मुट्ठी में मिलीं उसे वो रातें जिनका वो बहुत पहले क़त्ल कर चुका था और वो सोचता रहा कि क्या बदल पाएंगी अब लिंग, संबन्ध, और सम्बोधन वो असंख्य कविताएं जिन्हें वो लिखता आ रहा था दुनिया की तमाम लड़कियों के लिए

 

शुभम नेगी ( बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश से युवा कवि)

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