Dec 20, 2021Hindi Miscellaneousभोगे हुए यथार्थ के दुःख की नींव में हमेशा एक चिंगारी होती है - (अक्करमाशी, शरणकुमार लिंबाले)प्रकाशन वर्ष – १९८४ ( 1984 ) अनुवाद – सूर्यनारायण रणसुभे भोगे हुए यथार्थ के दुःख की नींव में हमेशा एक चिंगारी होती है। यह चिंगारी दो मुही...
Jun 24, 2021Featuredप्रेम कविताएं देवांश दीक्षित की आवाज़ मेंसुनिए अनुराग अनंत और विमल कुमार की प्रेम कविताएं देवांश दीक्षित की आवाज़ में "तुम हवा बनकर आई थी मेरे लिए तुम्हें मालूम नहीं था कि तुम...