Photo : Press Trust Of India
महामारी के दौरान भी हो रहे होंगे निषेचन बच्चे जो सामान्य परिस्थितियों में गर्भ में न आते आएँगे इस दुनिया में कठिन काल में प्रेम की दस्तावेज़ बनकर
बड़े होने पर वही बच्चे किंवदंती की तरह सुनेंगे इस महामारी के बारे में और विश्वास नहीं करेंगे इस पर
आज की काली सच्चाई का किंवदंती हो जाना गहराता जाएगा आने वाली पीढ़ियों के साथ जैसे हममें से बहुत मिथक समझते थे प्लेग की महामारी को जो लौटती रही अलग-अलग सदियों में, अलग-अलग देशों में उजाड़ती रही सभ्यताओं के अंश पौराणिक गल्प-सा मानते थे हम अकाल में भुखमरी से मरे लोगों को येलो फीवर या ब्लैक डेथ को (मानव महामृत्यु में भी रंग देखता है यह कलात्मकता है या रंगभेद?)
महामारी के दौरान मरे लोग सिर्फ़ एक संख्या होते हैं जैसे होते हैं, युद्ध में मरे लोग और हमेशा कम होता है आधिकारिक आँकड़ा कोई नहीं याद रखता कि उनमें से कितने कलाकार थे, कितने चित्रकार, कितने कवि कौन-सी अगली कविता लिखना या अगला चित्र बनाना चाहते थे वे व्यापारी कितना और कमाना चाहते थे कितने जहाज़ी अभी घर नहीं लौटे थे कौन-कौन समुद्र में किसी अज्ञात निर्देशांक पर मारा गया कितने बुज़ुर्ग अभी जीने की ज़िद नहीं छोड़ना चाहते थे कितने शादीशुदा जोड़ों की सेज पर अभी आकाश से टपक रहा था शहद कितने नवजात बच्चों ने अभी नहीं चखा था माँ के दूध के अलावा कुछ और इनमें से कितने गिने भी नहीं गए आधिकारिक आँकड़ों में सरकारों-हुक्मरानों के मुताबिक़ सदियों बाद भी ज़िंदा होना चाहिए उन्हें
महामारी से, या महामारी के कुछ दशक बाद मरकर हममें से प्रत्येक, संख्या में एक का ही इज़ाफ़ा करेगा भीड़ का हिस्सा या भीड़ से अलग ख़ुद को मानते रहने वाले हम गिनती में सिर्फ़ एक मनुष्य होते हैं
हममें से अधिकांश कवि गुमनाम मरेंगे और यदि जी पाई हमारी कोई कविता, कोई पंक्ति भविष्य में उसे उद्धृत करते हुए कोई इतना भर कहेगा— किसी कवि ने कहा था
कहीं न कहीं इस समय लिखी जा रही सभी रचनाओं में निहित है— विषाणु, पलायन, अवसाद, एकात्मकता
अंधकार की सभी कविताएँ जो फ़िलवक़्त बड़ी आसानी से समझ आ जाती हैं अपने बिंबों की विस्तृत परिभाषाएँ माँगेंगी भविष्य में किंवदंती का पुष्ट-अपुष्ट आधार बनेंगी
‘किसी कवि’ में समाहित सभी कवियों आओ, खड़े होते हैं महामारी से बचने को अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए एक नहीं, तीन-तीन मीटर दूर घेरों में या मान लेते हैं एक आभासी दुनिया में ठहरे हुए काल्पनिक घेरे और बारी-बारी गाते हैं प्लेग और अकाल आदि में मर गए पुरखों के स्मृति-गीत सुनाते हैं अपनी कविताएँ
उसके बाद उम्मीद भरी समवेत हँसी हँसते हैं
ठहाकों का अनुनाद एक कालजयी कविता है।
- देवेश पथ सारिया