"फूल कंफेशन्स हैं,
पेड़ से लटकते फूल
किसी के पाप, दुःख और प्रयाश्चित ही तो हैं।
जिस रोज़ कोई फूल झड़कर
गिर जाता है पेड़ से
समझ जाना किसी का कोई पाप
माफ़ हो चुका है"
एक कवि का परिचय उसकी कविताओं से बेहतर क्या हो सकता है। फूलों के गिर जाने को मुक्ति और पेड़ों से बात करने को चर्च में कंफेशन के रूप में संदर्भित करने वाले सैफ़ अंसारी की कविताएँ इस पृथ्वी के उन सजीव और निर्जीवों की आवाज़ हैं जो एक ऐसी भाषा बोलते हैं जिसे समझने के लिए एक कोमल कवि मन के अलावा हमारे पास कोई अन्य उपकरण नहीं हैं। प्रस्तुत हैं आपके समक्ष सैफ़ की कुछ कविताएँ।
1. मरा क्यों नहीं?
एक सर्द रात में
मैंने उस पेड़ को छुआ
उसका तना ठण्डा था !
वह ठण्ड से मरा क्यों नहीं?
उसके पत्ते झड़ चुके थे
सूखा नहीं था!
वह ठण्ड से मरा क्यों नहीं?
मैंने फिर
ज़मीन पर बिछी
उसकी जड़ों को देखा
ठीक सामने
ऐसा ही कोई एक पेड़ था
मुझे लगा
दोनों ने ज़मीन के भीतर
एक-दूसरे की जड़ों को
थाम रखा था अंदर कहीं शायद।
किसी के दुःख में
भीतर-ही-भीतर
किसी को
थामे रखना
यह मैंने पेड़ों से सीखा !
2. एक प्राकृतिक क्रिया
किसी फूल का हाथ
किसी टहनी के हाथ से
छूट जाना
और
उससे लगे पेड़ का
चुप-चाप खड़े
यह सब
बस देखते रहना
प्रेम में हुए
दो लोगों के बीच के
ना जाने ऐसे कितने बिछड़ाव
देखते आया है ईश्वर
किसी पेड़ की ही तरह
मौन रहकर
मानो
किसी का
किसी से अलग होना
जैसे
एक प्राकृतिक क्रिया है
जिसमें
ईश्वर का भी
कोई दख़ल नहीं।
3. दुःख के गर्भ पर हाथ
हमारे जीवन में
कभी-कभी दुःख
इतना हो जाता है
कि हम
दुःख शब्द के
“ख” अक्षर के गोलाकार गर्भ में
सिकुड़कर हो जाते हैं
दुनिया से दूर
एकदम अकेले !
जहाँ से
लोग हमें देख, सुन भी नहीं सकते
और गर कोई असल में
चाहे भी
महसूस करना
तो वक़्त लगाकर
आना होता है पहले उन्हें क़रीब हमारे
मुझे लगता है
जीवन-भर में
कुछ ही लोग
इतना वक्त लगाकर
हमारे पास आ पाते हैं
हमारे दुःख के गर्भ पर
अपना हाथ रख
हमारे साथ रो पाते हैं!
4. कन्फेशन बॉक्स
चाहता हूँ
किसी पेड़ के खोखल में
सिर दे कर
फूट-फूट कर रो लेना
जानता हूँ
वो मेरे हर ग़लत किये को सुनेगा
किसी चर्च के पादरी की तरह
बिना टोके एक मौन धारण किये हुए।
फिर बीच-बीच में जब मैं
अपने पापों का बखान करने हिचकिचाऊंगा
तो वो अपनी शाखें हिलाकर देगा
विश्वास का एक ठंडा झोंका।
और कहेगा- "डरो मत, अपने मन का बोझ हलका करो!"
कन्फेशन के दौरान
मेरे निकले आँसुओं को
खोखल के किसी कोने में इखट्ठा कर लेगा
और रो-रो कर
जब मेरी आँख लग आएगी
तो धीरे से सरका देगा
सारी बूँदें अपनी जड़ों में
जड़े सोख लेंगी वे सारे आँसू
और उन आँसुओं को पीने के बाद
अगली भोर
उसमें खिल आएगा एक फूल।
"पेड़ में लगे फूल क्या हैं?"
किसी ने मुझसे पूछा
मैंने कहा-
फूल कंफेशन्स हैं,
पेड़ से लटकते फूल
किसी के पाप, दुःख और प्रयाश्चित ही तो हैं।
जिस रोज़ कोई फूल झड़कर
गिर जाता है पेड़ से
समझ जाना किसी का कोई पाप
माफ़ हो चुका है
किसी को उसके मन, शरीर
और आत्मा के पाप से
मिल गई है मुक्ति।
5. हर एक कोने में
मकड़ियों-सी
स्मृतियाँ हैं तुम्हारी
जो उनको दूर हटाने
उनके पास जाता हूँ
वे तेज़ी से लगती हैं भागने
इधर-उधर
हर दिशाओं में
और यूँ
मैं यक़ीन कर लेता हूँ
घर से बाहर
जा चुकी हैं
मकड़ियाँ सारी।
कुछ दिनों बाद, मैं
पलट कर जब देखता हूँ
तो पाता हूँ
दीवाल के हर कोनों में
लग आए हैं वही जाले फिरसे
ठीक वैसे-ही-जैसे
तुम्हारी स्मृतियाँ
ओझल होती हैं
कुछ पल के लिए
और कुछ समय बाद
मैं पाता हूँ
चुपके से
वे उकेर गई हैं
चेहरा तुम्हारा
दिल के हर एक कोने में कहीं!
सैफ़ अंसारी पेशे से एक फ़्रीलांस इलस्ट्रेटर हैं और भोपाल के निवासी हैं। साथ ही विहान ड्रामा अकादमी से नाट्य लेखन की विधा के अध्येता हैं। सैफ़ की अन्य रचनाएँ उनके इंस्टाग्राम पेज पर पढ़ी जा सकती हैं।