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मेरी सीधी बातें एक मध्यवर्गीय लड़के का अवसाद हैं / हिमांशु जमदग्नि की कविताएँ


Himanshu Jamdagni

हीन


परवा और पछवा‌ के बीच

गोया तिल्ली मैं

कभी नहीं जला

जला तो केवल विश्वास

अपेक्षा की चिता पर सुबकता हुआ

मैं खुद को कनखजूरा मानता

हाथ‌‌ देने‌ वालों को‌ काटता

मरीचिका (हँसने की आवाज़)।

मैं डरा हुआ साँप

देखते ही मुंडी छेत‌ दी गई

मेरी आत्मा डिब्बी में बंद कर

बेच‌ दी गई (घाव भरने के‌‌ लिए)

महानगर की सड़कों पर‌ रेंगता मैं

हर व्यक्ति को सरकार समझता हूँ

घोषणा-पत्र पढ़ता हूँ

विश्वास करता हूँ

चुनता हूँ

भूल जाता हूँ

सरकारें क्या करती हैं

बिल‌ लाकर बिल तोड़ देती हैं

मरीचिका (रोने की आवाज़)

तवा

चिता

विश्वासघात

मैं ही सरकार

मैं ही साँप



अवसाद


महानगर में सड़क किनारे

घास ढूँढती गाय

फ़्लैट्स में अपना घोंसला टूटता देख रहे कबूतर

छत पर बैठे जंगल ढूँढ रहे बंदर

मेरे सबसे निकट हैं

पलक छपकर छाया अंधेरा

मुझसे लिपटा बिस्तर पर पड़ा रहता है

मेरा कान काटते हुए फुसफुसाता है

गाय-बंदर-कबूतर की जगह

मनुष्य लिखो

डर क्यों रहे हो?

सीधी बात कहो

मेरी सीधी बातें एक मध्यवर्गीय लड़के का अवसाद हैं

जिन्हें आत्महत्या पूर्व बेवकूफ़ी‌ समझा जाता है

और मैं?

अखबार पर कराहती ख़बर

अनसुनी और अनपढ़ी

मैं रोटियों की गर्मी बचाने लायक रह गई

नहीं मैं,

दो‌ पीढ़ियों के बीच पिसता गेहूँ हूँ

जिसका आटा चींटी भी नहीं खाती

खाते हैं मुझसे घिन खाते हुक्मरान

और गाय की आँखों में अभी भी उम्मीद बो रही

भावहीन -शक्ति।



मैं अभिनेता हूँ


अभिनय करता हूँ

मैथड-एक्टिंग

जीने की,

जीवन में

निर्देशक के मुँह से सुनता हूँ गालियाँ

दर्शकों के हाथों से तालियाँ

निर्देशक मैं हूँ

दर्शक एक बड़ी -सी खाप

बन्द है मेरा सर

उनके एबस्ट्रेक्ट फ्रेम में

डॉयलॉग भूला - मारा जाऊँगा

सर निकाला - भूखा रह जाऊँगा

सच बोला - घर नहीं ढूँढ पाऊँगा

तालियाँ!

मैं अह्म की ख़ातिर जला दिया जाऊँगा

या बनकर आँसू

अपने पालनहारों की आँखों में फूट पड़ूँगा

मैं क्या करूँगा?

अभिनय

जीने का।

मैं हो जाऊँगा दाख़िल

अपने मन-बस्ते में

ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियाँ

वहाँ मुझे संतुष्ट करने में लगी हैं,

पर मैं पाब्लो का कुत्ता

अभिनय करने में लगा हूँ

मुझे डर है मेरे बदन में

चीटियाँ दौड़ रही हैं

मतीरा फूट गया

दीवारों पर उभरी आकृतियाँ

मुझे बुला रही हैं

हमारे मध्य चार गज़ की दूरी

मुझे चार प्रकाश वर्ष की लगती है

दूर वहीं,

खड़ा है यम

तलवों के नीचे दबाए भुजंग

भुजंग बजा रहे मृदंग

मृदंग पर लघु मानव-कंकाल

उनपर लेपित अति मानव-खाल

छूट रहे प्राण

पर,

क्या मेरी आत्मा अभिनय करेगी?

मृत्यु पश्चात खाप बचेगी?



सर्वोच्च न्यायालय


प्रेम में मारा जाता है इंसान

भयानक मौत,

पर मैं विद्रोही हूँ

संतोष और जीवन एक साथ चाहता हूँ

वजह? झूठ? मन-ठूठ? तीन भूख?

वजह दोनों की समान है,

ये कहना भी अपमान है?

इसलिए तुम हो

इसलिए मैं हूँ

ख़ानाबदोशियों की सर जमीं पर

आमने -सामने

जिनकी छातियों के खून से बना सुरमा

तुमने आँखों में लगाया है

सजाया है बदन

कृष्ण-गुलाबों से

खिले हैं सोखकर आब आँखों से

बंजर जमीन पर जन्में ये शजर

देखो ,इनके सर कट गए

न्याय शब्द को जानने से पहले

शजर मर गए

न्याय‌ शब्द का पर्याय प्रेम है

शजर न जान सके

न्याय माँगना

पर मैं जानता हूँ प्रेम माँगना

मुझे प्रेम दो

रक़ीब से न डरो

न ख़ौफ़ खाओ

ख़्वाब में उसकी चील जैसी आँखों का

खौलते तेल जैसी बातों का

उखाड़ फेंको उसे

ज्यों खेत में से उखाड़ी जाती है खरपतवार

फिरणी पर बने घर-बार

तानाशाह सरकार,

उखाड़ी जाती है

सब्र का घूँट पीकर पीड़ित हुए

समाज द्वारा

है गवारा क्यों ये जुल्म?

मुझ पर क्यों ये सितम?

प्लास्टिक में प्रकृति पर, क्यों यह मौन?

दंगे में मरे ईश्वर पर, क्यों यह मौन?

फटी बाल हथेलियों पर ,क्यों यह मौन?

तुम्हारा मौन एक दिन देश खा जाएगा

तुम्हारे ख़ौफ़ पर सवार हो तानाशाह

देश लूट कर चला जाएगा

इस‌ देश-दिल-निवासी की गुहार सुनो

हे सर्वौच्च

मुझे न्याय दो

तेरे आलय के बाहर प्रेम पत्र रखकर

जा रहा हूँ

याद रखना मैं विद्रोही हूँ

मैं कवि हूँ

हिन्दी का

सड़कछाप।


 

कवि के बारे में


हिमांशु जमदग्नि की कविताओं के प्रकाशित होने का यह प्रथम अवसर है। वे फ़िलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर कर रहे हैं। उनसे उनकी ईमेल आईडी : himanshujamdagni66250@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है

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